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अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत कथा, पूजन विधि और पूजन सामग्री।

कब और क्यों किया जाता है अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत

  अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त 2018
पूजा समय - सांय 05:45 से 07:02 तक ( 31 अक्तूबर 2018)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 11:09 बजे  ( 31 अक्तूबर 2018)
अष्टमी तिथि समाप्त - 09:10 बजे ( 01 नवंबर 2018)


  यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण-पक्ष के अष्टमी के दिन किया जाता हैं। जिस वार को दीपावली होती हैं, अहोई अष्टमी भी उसी वार को पड़ती हैं। इस व्रत को वे स्त्री करती है जिनके संतान होती हैं। इस व्रत को स्त्रियों द्वारा अपने संतान हेतु दीर्घजीवी और आरोग्यता प्राप्ति के लिए किया जाता हैं।

अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत  पूजन एवम विधि विधान

इस व्रत को दिन-भर निराहार रहकर किया जाता हैं। रात्रि में चंद्रोदय होने के बाद दिवार पर बनी हुई अहोई माता के चित्र के सामने किसी एक लोटे में जल भर रख दें। चाँदी द्वारा निर्मित्त या चाँदी की बनी हुई स्याउ (माद बनाकर रहने वाला एक जंतु) की मूर्ति और दो गुड़िया रखकर उसे मौली से गूथ ले। तत्पश्चात रोली अक्षत से उनकी पूजा करे। पूजा करने के बाद दूध-भात, हलवा आदि का उन्हें नैवेघ अर्पण करे। चन्द्रमा को जल अर्पण करे फिर हाथ में गेहूँ के सात दाने रखकर अहोई माता की कथा सुने। उसके बाद मौली में पिरोई  अहोई माता को गले में धारण कर ले। अर्पित किये गए नैवैघ ब्राह्मण को अर्पित कर दे अगर ब्राह्मण न हो तो सास को ही दे दें। दीपावली के शुभ दिन अहोई को उतारकर उसको गुड़ से भोग लगावे और जल के छीटे देकर प्रणाम कर रख दें। जितने बेटे हैं उतनी बार तथा जिनके विवाह हो गया हो उतनी बार चाँदी के 2-2 दाने अहोई में डालती जायें, ऐसा करने से माता खुश होती है और बच्चों को दीर्घ आयु देती है और घर में मंगल कार्य करती रहती हैं। इस दिन पंडित को पेठा दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती हैं।


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अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत पूजा कथा 

एक साहूकार के सात पुत्र थे। साहूकार की पत्नी खदान में से मिट्टी खोदकर मिट्टी लाने गयी। जैसे ही उसने मिट्टी खोदने के लिए कुदाल चलायी वैसे ही उसमे रह रहे स्याव के बच्चे प्रहार से आहत होकर मर गए। जब इसकी पत्नी ने कुदाल को रक्त से रंजीत देखा को उससे दुःख हुआ। अतः वो दुखी होकर लौट आई। पश्चाताप के कारण वह मिटटी भी नहीं ला सकी।

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     इसके बाद जब स्याउ अपने घर लौटी तो अपने बच्चे को रक्त से रंजीत पाया। वह दुःख से क़तर हो विलाप कर रोने लगी। उसने भगवान् से प्राथना की कि जिसने भी मेरे बच्चो को मारा है,उससे भी पुत्र शोक भुगतना पड़े। इधर स्याऊ के शाप से एक वर्ष के अंदर ही सेठानी के सातों पुत्र बारी-बारी से काल-कवलित हो गए। इस प्रकार की दुखद घटना होते देख कर सेठ-सेठानी अत्यंत शोकाकुल हो उठे।
        उन दंपतियों ने किसी तीर्थ-स्थान में जाकर अपने प्राणों का विसर्जन कर देने का मन में संकल्प कर लिया। मन में ऐसा निश्चय कर सेठ-सेठानी घर से पैदल ही तीर्थ-स्थल की ओर चल पड़े। उन लोगों को मार्ग में खाने पीने की भी कोई सुधि न रही। जब तक उन दोनों का शरीर पूर्णरुप से अशक्त न हो गया तब तक वे बराबर आगे बढ़ते रहे। जब वे चलने में बिल्कुल असमर्थ हो गए, तो रास्ते में ही मूर्छित हो कर गिर पड़े।
           उन दोनों की इस दयनीय दशा को देखकर करूणानिधि भगवान् उन पर  दयार्द्र हो गए और उन्होंने आकाशवाणी की-हे सेठ! तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय अंजान में ही सही ( स्याऊ) के बच्चों को मार डाला था। इसी कारण तुझे भी अपने बच्चों का कष्ट झेलना पड़ा। भगवान् ने आज्ञा दी अब तुम दोनों अपने घर जाकर गाय की सेवा करो और अहोई-अष्टमी आने पर विधि-विधान पूर्वक प्रेम से अहोई माता की पूजा करो। सभी जीवों पर दयाभाव रखो, किसी का अहित न करो। यदि तुम मेरे कहने के अनुसार आचरण करोगे, तो तुम्हें संतान-सुख प्राप्त हो जायेगा।
        इस आकाशवाणी को सुनकर सेठ-सेठानी को कुछ धैर्य हुआ और वे दोनों भगवती का स्मरण करते हुए अपने घर को प्रस्थान किये। घर पहुंचकर उन दोनों ने आकाशवाणी के अनुसार कार्य करना प्रारंभ कर दिया। इसके साथ ही ईर्ष्या-द्वेष की भावना से रहित होकर सभी प्राणियों पर करुणा का भाव रखना प्रारम्भ कर दिया।
  भगवत-कृपा से सेठ-सेठानी पुनः पुत्रवान होकर सभी सांसारिक सुखों को भोग करने लगे और अंतकाल में स्वर्गगामी हुए।


क्या है करवा चौथ का व्रत कथा, पूजन विधि, पूजन सामग्री

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Karwa Chauth Vrat 2018 : क्या है करवा चौथ का व्रत कथा, पूजन विधि, पूजन सामग्री और ये गलतियाँ ना करें वरना अशुभ हो सकता है|

  कब और कैसे करे करवा चौथ का व्रत 

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 करवा चौथ 2018 का मुहूर्त समय
27 अक्तूबर
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:36 से 18:54
चंद्रोदय- 20:00
चतुर्थी तिथि आरंभ- 18:37 (27 अक्तूबर)
चतुर्थी तिथि समाप्त- 16:54 (28 अक्तूबर)     

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ अथवा करक चतुर्थी मनाया जाता है| इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए गणेश जी की पूजा करने का विधान हैं| क्योकि सभी देवों में इन्हें अनादि देव माना गया है| करवा चौथ के दिन व्रती को नित्य कर्म से निवृत होकर गणेश जी की पूजा का मन से दृढ सकल्प करना चाहिए की मैं आज दिन भर निराहार रहकर गणेश जी के ध्यान में तत्पर रहूंगी और रात्रि में जब तक चन्द्र उदय नहीं होता तब तक निर्जल व्रत करुँगी|
     व्रत के दिन शाम में घर की दिवार को गोबर से लीपकर उसके गेरू की स्याही बनाकर उसमें गणेश, पार्वती, शिव, कार्तिक आदि की प्रतिमा बनानी चाहिए| साथ ही एक बरगद का पेड़, मानव की आकृति बनाकर दिखानी चाहिए| उसके हाथ में छलनी भी होनी चाहिए| पास में उदित होते हुए चाँद की आक्रति भी उसी दिवार होनी चाहिए|
Karwa Chauth Wrat 2017 : क्या है करवा चौथ का व्रत कथा, पूजन विधि, पूजन सामग्री और ये गलतियाँ ना करें वरना अशुभ हो सकता है|
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करवा चौथ पूजा विधि और सामग्री

     पूजन काल में प्रतिमा के नीचे दो करवों (तांबा, पीतल या मिट्टी का पात्र जिसमे टोटी लगा हो) में जल भरकर रखना चाहिए| उस करवें के गले में नारा लपेटकर सिंदूर से रंगना चाहिए और उसके टोटी में सारे (एक प्रकार का तृण) की सिंक लगानी चाहिए| करवें के उपर चावल से भरा कटोरा जिसमे सुपारी भी रखनी चाहिए| नैवेद्य के रूप में चावल की बनी लड्डू रखें| इसके अतिरिक्त ऋतू फल के अनुसार केला, नारंगी, गन्ना, आदि, जो कुछ भी उपलब्ध हो अर्पित कर कथा सुने |

करवा चौथ व्रत कथा

      एक साहूकार के सात पुत्र और एक पुत्री थी| कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन साहूकार की पत्नी, उसकी सभी बहुओं और कन्या ने मिलकर व्रत का अनुष्ठान किया| सभी ने शाम को एक साथ गणेश पूजा किया| पूजन के बाद साहूकार के सभी पुत्र भोजन करने बैठे| भाइयों ने बहिन से भी भोजन करने को आग्रह किया| बहिन ने उत्तर दिया -तुम सभी बोजन कर लो मैं चन्द्र उदय को अर्ध्य देने के बाद ही भोजन करुँगी |बहिन की बात सुनकर भाइयों ने कुछ दुरी पर आग जला दी और प्रकाश को छलनी में से दिखाकर कहा -बहिन! देखो ,सामने चन्द्रमा निकल आया है |अब तुम भी भोजन कर लो |भाई की बात को सुनकर बहिन ने भी भाभियों से ये बात दोहराई| उसकी भाभियों को ये कपटपूर्ण बात को जानती थी| उन्होंने उसे कहा अभी चन्द्र नहीं निकला है| परुन्तु उसने अपनी भाभियों के बात पर धयान नहीं दिया अर्ध्य दे दिया और भोजन कर लिया| उसके इस कृत्य से गणेश जी अत्यंत क्रोधित हो गए जिसके फलश्वरूप उस कन्या का पति भयंकर रोग से ग्रसित हो गया और वह शोकाकुल होकर कष्ट भोगने लगी|
                                                जब उससे अपनी भूल का ज्ञान हुआ तो मन में पस्चाताप करने लगी| उसने अपनी भूल के लिए गणेश जी से छमा याचना की और व्रत को भक्तिपूर्वक पूरा किया| उसकी आराधना से गणेश जी प्रस्सन हो गये ओर सभी कष्टों का निवारण कर उससे धन -धान्य से पूर्ण किया|
         अतएव इस वर्त को जो प्राणी विधिपूर्वक संपन्न कर लेता हैं, उसकी सभी आशाएं पूरी हो जाती हैं| इस प्रकार कथा सुनने के बाद चन्द्र उदय होने पर चन्द्र देव को अर्ध्य प्रदान करना चाहिए|अर्ध्य में जल,अक्षत ,चन्दन,ऋतू फल आदि को देना चाहिए| घी का दीपक जलाकर चन्द्र देव को दिखाना चाहिए| अर्ध्य या दान काल में "ॐ चंद्राय नमः" मंत्र का उच्चारण करना चाहिए| इसके बाद चार बार परिक्रमा कर चंद्रदेव को दंडवत करना चाहिए |और पति के हाथ से जल ग्रहण कर ही वर्त खोलना चाहिए| पूजाकाल में अर्पित नैवैद आदि को ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए| इस प्रकार भक्तिभाव से जो स्त्री इस चतुर्थी वर्त को पूरा करती हैं उसका सौभाग्य और मनोकामना पूर्ण होता  हैं | 


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 करक चतुर्थी (करवा चौथ )  उद्यापन विधि 


किसी भी वर्त की पूर्णता पर ही उसका उद्यापन करना चाहिए| वर्त की तिथि पर ही उद्यापन किया जाता है| जिस वर्ष में उदयाप्न करना हो, उस वर्त की कार्तिक कृष्णा चतुर्थी के दिन वर्त समाप्त होने के बाद एक थाली को कुमकुम से रंजित कर चार -चार की संख्या में पूरी और शक्कर रखकर तेरह स्थान पर रख दे, एक साड़ी ब्लाउज, श्रृंगार  दक्षिणा रख कर अपनी सास को अर्पण कर दे| जिसकी सास न हो ब्राह्मणों को दान कर दे| उसके बाद तेरह ब्राहमणों को भोजन कराकर उन्हें द्रव्य दक्षिणा दे कर विदा करें| उसके बाद ही स्वं भोजन ग्रहण करे ऐसा करने से आपका शौभाग्य अक्षय बना रहेगा|

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विश्वकर्मा जयंती का महत्व और पूजा विधि हिंदी में|

कौन है, विश्वकर्मा?

       हिन्दू धर्म में भगवान् विश्वकर्मा को देवताओ का इंजीनियर माना जाता है तथा इन्हें पुराणों में वैमानिकी विद्या, नव विद्या, यंत्र विद्या आदि का आविष्कारक माना जाता है|
एक कथा के अनुसार भगवान् विश्वकर्मा ने ही प्राचीन काल में स्वर्गलोक, स्वर्ण नगरी लंका, दवारिका और हस्तिनापुर, इन्द्रपुरी, यमपुरी, कुबेर्पुरी आदि नगरों का निर्माण किया है| और साथ ही साथ पुष्पक विमान, यमराज का कालदंड, कर्ण का कुंडल, भगवान् विष्णु का सुदर्शन चक्र, भगवान् शंकर का त्रिशूल का भी निर्माण भगवान् विश्वकर्मा ने ही किया है|

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भगवान् विश्वकर्मा की उत्पत्ति :

       एक कथा के अनुसार यह मान्यता है की सृष्टि के आरंभ में सर्वप्रथम भगवान् विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर प्रकट हुए और उनकी नाभि कमल से चतुर्मुख भगवान् ब्रह्मा प्रकट हुए|
        भगवान् ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा  धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए| वास्तुदेव धर्म के सातवें पुत्र थे| वास्तुदेव को शिल्पशास्त्र का जनक माना जाता हैं| भगवान् विश्वकर्मा, वास्तुदेव और उनकी पत्नी अन्गिर्शी के पुत्र थे|

         ऐसी मान्यता है की, भगवान् विश्वकर्मा के पांच पुत्र थे| मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी और देवज्ञ|

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कब मनाया जाता है विश्वकर्मा पूजा?

          दक्षिण भारत में विश्वकर्मा पूजा नवरात्री के नवमी पूजा ( आयुधा पूजा ) के दिन माँ सरस्वती के साथ ही मनाया जाता क्योकि माँ सरस्वती विद्या की देवी है और भगवान् विश्वकर्मा भवन निर्माण की विध्याओ के आविष्कारक है|

          उत्तर भारत में भी सभी शिल्प संकायों, कारखानों, उद्योगों में भगवान् विश्वकर्मा की महत्ता को प्रकट करते हुए, हर साल 17 सितम्बर को विश्वकर्मा पूजा पुरे देश में हर्षोल्लास के साथ माने जाता है| यह उत्पादन-वृद्धि और राष्ट्रीय समृधि के लिए एक संकल्प है|

           आप सबों को मेरी ओर से विश्वकर्मा पूजा की शुभकामनाए|

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गणपति विसर्जन

गणपति विसर्जन

गणेश उत्सव हर साल की तरह इस साल भी बड़े हर्ष और उल्लास के साथ पूरे देश भर में मनाया जा रहा है। लोग गणपति की छोटी-बड़ी प्रतिमा को अपने घर में विधि-विधान से स्थापित करते है और विधिवत पूजा करते हैं| अंत में किसी नदी या समुंद्र में विसर्जित कर देते है।

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विसर्जन के लिए उपयुक्त समय

गणपति विसर्जन के लिए सबसे अच्छा दिन अनंत चतुर्दशी को माना जाता है जोकि गणेश चतुर्दशी के 11वें दिन आता है।
इसके अलावा आप अपनी सुविधा के अनुसार डेढ़ दिन, 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन, 9 दिन में भी गणपति विसर्जन कर सकते है।
बड़े-बड़े पूजा समिति या सामूहिक रूप से स्थापित गणपति को 11वें दिन में ही विसर्जित करने का प्रचलन है। दस दिनों तक गणपति बप्पा की सेवा और पूजा अर्चना करने के बाद 11 वें दिन ढोल-नगाड़े बजाते और नाचते-गाते भक्तगण गणपति जी की प्रतिमा को विसर्जित करते है।
गणपति के साथ बिताए 10 दिन हमारे यादगार पलों में शामिल हो जाते हैं और ये हमेशा अच्छे कामों के लिए प्रेरित करते रहते है साथ ही साथ हमें उत्साहित करते हैं।
गणपति विसर्जन करते हुए हम यही कामना करते है कि गणेश जी के आशीर्वाद से हमारा साल अच्छा बितेगा और हमारे काम में उन्नति होगी।
“गणपति बप्पा मोरया,

सत्यनारायण भगवान की पूजा

विसर्जन के दिन सभी लोग अपने घरों में सत्यनारायण भगवान की पूजा करते है और दोस्तो-रिश्तेदारों को बुलाते है और उनके घर जाते है।

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हरितालिका तीज व्रत | गौरी तीज | हरितालिका तृतीया की पूजा विधि, पूजा सामग्री और व्रत कथा

हरितालिका/हरियाली तीज/हरतालिका तीज व्रत की पूजा विधि, पूजा सामग्री और व्रत कथा

  तीज के प्रकार

भारत में तीज व्रत को अलग - अलग जगहों पर अलग अलग नाम से जाना जाता है और कुछ जगहों पर उन्हें अलग तिथियों में मनाया जाता है। तीज व्रत के  कुछ प्रसिद्ध नाम हैं: हरितालिका तीज, गौरी तीज, हरितालिका तृतीया, अखा तीज, हरियाली तीज, कजली तीज, कजरी तीज, बडी तीज, सातुडी तीज, हरतालिका तीज।

हरितालिका तीज व्रत वर्ष 2018 के 12 September 2018 के दिन प्रातःकाल 06:00 बजे से 09:00  बजे तक पूजा का मुहूर्त है।
हरितालिका व्रत कथा महिलाएँ अपने अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं। इस व्रत को कुँवारी कन्याएँ भी सूंदर,  गुणवान, योग्य और मनचाहे पति के लिए करती हैं। यह व्रत सुहाग की रक्षा के लिए किया जाता हैं। इस कठोर व्रत को करके ही पार्वती जी ने शिवजी को प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने वाली स्त्री को सात जन्मों तक सुख और सौभाग्य मिलता है। इस व्रत को शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को भाद्रपद मास (हस्तनक्षत्र) में किया जाता है।

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पूजा के लिए आवश्यक सामग्री

बालू की भगवान शिवजी और माता पार्वती की प्रतिमा, केले के स्तम्भ, रेशमी वस्त्र, चंदन या सुगन्धित द्रव्य, शंख, पुष्प, सुगन्धित धूप, नारियल, सुपारी, निम्बू, लौंग, फल, सुहाग के श्रृंगार  आदि।

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हरितालिका व्रत विधि

हरितालिका व्रत करने के लिये स्त्रियों को व्रत के दिन प्रात: शीघ्र उठना चाहिए. इस दिन से पूर्व संन्ध्या में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए| प्रात: स्नान आदि करने के बाद, व्रत का संकल्प लिया जाता है| और भगवान शंकर व माता पार्वती जी की पूजा की जाती है| इस व्रत को निर्जल रहकर किया जाता है| व्रत के दिन माता का पूजन धूप, दीप व फूलों से करना चाहिए| अंत में व्रत की कथा सुनी जाती है| और घर के बडों से आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है| 

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हरितालिका व्रत कथा

एक बार भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा- एक बार ज तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर गंगा के किनारे, मुझे पति रुप में प्राप्त करने के लिये कठिन तपस्या की थी| उसी घोर तपस्या के समय नारद जी हिमालय के पास गये तथा कहा की विष्णु भगवान भगवान आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते है| इस कार्य के लिये मुझे भेजा है|
नारद की इस बनावटी बात को तुम्हारे पिता ने स्वीकार कर लिया, तत्पश्चात नारद जी विष्णु के पास गये और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करने का निश्चय कर लिया है| आप इसकी स्वीकृ्ति दें| नारद जी के जाने के पश्चात पिता हिमालय ने तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है|

यह जानकर तुम्हें, अत्यंत दु:ख हुआ| और तुम जोर-जोर से विलाप करने लगी| एक सखी के साथ विलाप का कारण पूछने पर तुमने सारा वृ्तांत कह सुनाया कि मैं भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए कठिन तपस्या प्रारक्भ कर रही हूं, उधर हमारे पिता भगवान विष्णु के साथ संबन्ध तय करना चाहते है| मेरी कुछ सहायता करों, अन्यथा मैं प्राण त्याग दूंगी|
सखी ने सांत्वना देते हुए कहा -मैं तुम्हें ऎसे वन में ले चलूंगी की तुम्हारे पिता को पता न चलेगा| इस प्रकार तुम सखी सम्मति से घने जंगल में गई| इधर तुम्हारे पिता हिमालय ने घर में इधर-उधर खोजने पर जब तुम्हें न पाया तो बहुत चिंतित हुए क्योकि नारद से विष्णु के साथ विवाह करने की बात वो मान गये थे|
वचन भंग की चिन्ता नें उन्हें मूर्छित कर दिया| तब यह तथ्य जानकर तुम्हारी खोज में लग गयें| इधर सखी सहित तुम सरिता किनारे की एक गुफा में मेरे नाम की तपस्या कर रही थी| भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृ्तिया तिथि का उपवास रहकर तुमने शिवलिंग पूजन तथा रात्रि जागरण भी किया|
इससे मुझे तुरन्त तुम्हारे पूजर स्थल पर आना पडा| तुम्हारी मांग और इच्छा के अनुसार तुम्हें, अर्धांगिनी रुप में स्वीकार करना पडा| प्रात:बेला में जब तुम पूजन सामग्री नदी में छोड रही थी तो उसी समय हिमालय राज उस स्थान पर पहुंच गयें| वे तुम दोनों को देखकर पूछने लगे कि बेटी तुम यहां कैसे आ गई| तब तुमने विष्णु विवाह वाली कथा सुना दी| 
यह सुनकर वे तुम्हें लेकर घर आयें और शास्त्र विधि से तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया| उस दिन जो भी स्त्री इस व्रत को परम श्रद्वा से करेगी, उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग मिलेगा|

प्रतियोगी परीक्षाओं  की तैयारी के लिए कुछ महत्वपूर्ण G. K. का पोस्ट (जरूर पढ़े)

विभिन्न देशों की संसद | Parliaments of Different Countries | Important G Ks for Railway, SSC, IBPS and other Exams



व्रत के सामान्य नियम :- इस व्रत में कुछ ना खाने-पीने की वजह से ही इसका नाम हरितालिका तीज पड़ा। व्रती स्त्री को पहले नित्य कर्म स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त (यदि संभव हो तो गंगा-यमुना में स्नान) हो प्रसन्नतापूर्वक वस्त्राभूषणों से श्रृंगार कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए, व्रत के दौरान किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए, किसी प्रकार के तामसिक आहार व अन्न, चाय, दूध, फल, रस (जूस) आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

वट सावित्री व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व


व्रत के समय हरि चर्चा व भजन, कीर्तन करते रहना चाहिए और सायंकाल में माँ पार्वती व भगवान शिव की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए, अर्थात्‌शिव व पार्वती को उनसे संबंधित श्रृंगार की वस्तुएँ, फल, दक्षिणा अर्पित कर आरती करें। व्रत की कथा सुनें, अपराध क्षमा प्रार्थना कर भगवान को प्रणाम करें और बड़ों व ब्राह्मणों को प्रणाम कर भोजन व दक्षिणा दें, जिससे व्रत पूर्णतया सफल रहता है। 

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वट सावित्री व्रत कथा, पूजा विधि और इसका महत्व | वट सावित्री व्रत 2018

वट सावित्री पूजा कैसे करे? और इस व्रत की कथा, पूजा विधि, पूजा की तिथि और इसका महत्व क्या है?


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 व्रत सावित्री पूजा, भारतीय महिलाओ द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाये उपवास कर अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिये रखती हैं। यह व्रत भारत के अलग-अलग जगहों में अलग-अलग तिथि में रखा जाता है।

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1) उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। तदनुसार इस वर्ष गुरुवार 15 मई 2018 को वट सावित्री व्रत मनाया जाएगा।
2) और महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होता है। जोकि 27 जून को होगा। इस व्रत का नाम सावित्री के नाम पर रखा गया है| उत्तर भारत में इसे व्रत सावित्री के नाम से मनाया जाता है जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में इसे वट पूर्णिमा व्रत के नान से मनाया जाता है|

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वट सावित्री व्रत कथा (वट सावित्री पूजा कैसे करेें)

ऐसा कहा जाता हैं क़ि सावित्री अपने पति सत्यवान, जिनकी आयु सीमाबध्य थी रह रही थी। सत्यवान की मृत्यु का समय निकट आ गयी था, एक दिन वह वर्गद के पेड़ से लकड़ी काट रहा था, तो उसे यमराज के भेजे हुए साँप ने काट लिया। सावित्री का हाल बेहाल था। उसने यमराज से प्राथना की उसके पति के प्राण वापिस कर दे, यमराज के मना करने पर वह उनके पीछे पीछे चल पड़ी।यमराज ने उसे कई प्रस्ताव दिए पर वह पति के साथ ही रहने के बात पर वो अपने पति के साथ ही जाने के बात पर अरी रही।अंत में यमराज को उसकी पति भक्ति देख कर हार मानना परा सत्ववान के प्राण वापिस करने लगे। तब से महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ की पूजा अर्चना करती है|

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वट सावित्री  व्रत की पूजा विधि ( वट सावित्री व्रत कैसे किया जाता है)

महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं और वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा आराधना करती हैं। एक बांस की टोकरी मे सात तरह के अनाज रखते जिसे कपड़े के दो टुकड़े से ढ़क देते है दूसरी टोकरी में सावित्री की प्रतिमा रखते है फिर वट वृक्ष को जल,अक्षत,कुमकुम से पूजा करते है फिर लाल मौली से वृक्ष के सात बार चक्कर लगाते हुए ध्यान करते हैं। इसके बाद सभी महिलाएं सावित्री की कथा सुनाती है फिर दान दक्षिणा देतें है|

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