अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत कथा, पूजन विधि और पूजन सामग्री।

कब और क्यों किया जाता है अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत

  अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त 2018
पूजा समय - सांय 05:45 से 07:02 तक ( 31 अक्तूबर 2018)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 11:09 बजे  ( 31 अक्तूबर 2018)
अष्टमी तिथि समाप्त - 09:10 बजे ( 01 नवंबर 2018)


  यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण-पक्ष के अष्टमी के दिन किया जाता हैं। जिस वार को दीपावली होती हैं, अहोई अष्टमी भी उसी वार को पड़ती हैं। इस व्रत को वे स्त्री करती है जिनके संतान होती हैं। इस व्रत को स्त्रियों द्वारा अपने संतान हेतु दीर्घजीवी और आरोग्यता प्राप्ति के लिए किया जाता हैं।

अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत  पूजन एवम विधि विधान

इस व्रत को दिन-भर निराहार रहकर किया जाता हैं। रात्रि में चंद्रोदय होने के बाद दिवार पर बनी हुई अहोई माता के चित्र के सामने किसी एक लोटे में जल भर रख दें। चाँदी द्वारा निर्मित्त या चाँदी की बनी हुई स्याउ (माद बनाकर रहने वाला एक जंतु) की मूर्ति और दो गुड़िया रखकर उसे मौली से गूथ ले। तत्पश्चात रोली अक्षत से उनकी पूजा करे। पूजा करने के बाद दूध-भात, हलवा आदि का उन्हें नैवेघ अर्पण करे। चन्द्रमा को जल अर्पण करे फिर हाथ में गेहूँ के सात दाने रखकर अहोई माता की कथा सुने। उसके बाद मौली में पिरोई  अहोई माता को गले में धारण कर ले। अर्पित किये गए नैवैघ ब्राह्मण को अर्पित कर दे अगर ब्राह्मण न हो तो सास को ही दे दें। दीपावली के शुभ दिन अहोई को उतारकर उसको गुड़ से भोग लगावे और जल के छीटे देकर प्रणाम कर रख दें। जितने बेटे हैं उतनी बार तथा जिनके विवाह हो गया हो उतनी बार चाँदी के 2-2 दाने अहोई में डालती जायें, ऐसा करने से माता खुश होती है और बच्चों को दीर्घ आयु देती है और घर में मंगल कार्य करती रहती हैं। इस दिन पंडित को पेठा दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती हैं।


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अहोई अष्टमी (अशोकाष्टमी) व्रत पूजा कथा 

एक साहूकार के सात पुत्र थे। साहूकार की पत्नी खदान में से मिट्टी खोदकर मिट्टी लाने गयी। जैसे ही उसने मिट्टी खोदने के लिए कुदाल चलायी वैसे ही उसमे रह रहे स्याव के बच्चे प्रहार से आहत होकर मर गए। जब इसकी पत्नी ने कुदाल को रक्त से रंजीत देखा को उससे दुःख हुआ। अतः वो दुखी होकर लौट आई। पश्चाताप के कारण वह मिटटी भी नहीं ला सकी।

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     इसके बाद जब स्याउ अपने घर लौटी तो अपने बच्चे को रक्त से रंजीत पाया। वह दुःख से क़तर हो विलाप कर रोने लगी। उसने भगवान् से प्राथना की कि जिसने भी मेरे बच्चो को मारा है,उससे भी पुत्र शोक भुगतना पड़े। इधर स्याऊ के शाप से एक वर्ष के अंदर ही सेठानी के सातों पुत्र बारी-बारी से काल-कवलित हो गए। इस प्रकार की दुखद घटना होते देख कर सेठ-सेठानी अत्यंत शोकाकुल हो उठे।
        उन दंपतियों ने किसी तीर्थ-स्थान में जाकर अपने प्राणों का विसर्जन कर देने का मन में संकल्प कर लिया। मन में ऐसा निश्चय कर सेठ-सेठानी घर से पैदल ही तीर्थ-स्थल की ओर चल पड़े। उन लोगों को मार्ग में खाने पीने की भी कोई सुधि न रही। जब तक उन दोनों का शरीर पूर्णरुप से अशक्त न हो गया तब तक वे बराबर आगे बढ़ते रहे। जब वे चलने में बिल्कुल असमर्थ हो गए, तो रास्ते में ही मूर्छित हो कर गिर पड़े।
           उन दोनों की इस दयनीय दशा को देखकर करूणानिधि भगवान् उन पर  दयार्द्र हो गए और उन्होंने आकाशवाणी की-हे सेठ! तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय अंजान में ही सही ( स्याऊ) के बच्चों को मार डाला था। इसी कारण तुझे भी अपने बच्चों का कष्ट झेलना पड़ा। भगवान् ने आज्ञा दी अब तुम दोनों अपने घर जाकर गाय की सेवा करो और अहोई-अष्टमी आने पर विधि-विधान पूर्वक प्रेम से अहोई माता की पूजा करो। सभी जीवों पर दयाभाव रखो, किसी का अहित न करो। यदि तुम मेरे कहने के अनुसार आचरण करोगे, तो तुम्हें संतान-सुख प्राप्त हो जायेगा।
        इस आकाशवाणी को सुनकर सेठ-सेठानी को कुछ धैर्य हुआ और वे दोनों भगवती का स्मरण करते हुए अपने घर को प्रस्थान किये। घर पहुंचकर उन दोनों ने आकाशवाणी के अनुसार कार्य करना प्रारंभ कर दिया। इसके साथ ही ईर्ष्या-द्वेष की भावना से रहित होकर सभी प्राणियों पर करुणा का भाव रखना प्रारम्भ कर दिया।
  भगवत-कृपा से सेठ-सेठानी पुनः पुत्रवान होकर सभी सांसारिक सुखों को भोग करने लगे और अंतकाल में स्वर्गगामी हुए।


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